न्यूज़ चक्र। ढूंढाड़ इलाके (जयपुर, दौसा, सवाई माधोपुर) के बौंली उपखंड के सिंघाड़े प्रसिद्ध हैं। इस समय हरियाली से भरपूर सवाई माधोपुर के तालाबों और बांधों में सिंघाड़े की खेती परवान पर है। यह सिंघाड़ों का सीजन है जो दीपावली से 10 दिन पहले शुरू होकर फरवरी तक चलता है।
इस बार मानसून सीजन अच्छा रहने से छोटे-बड़े सभी तालाब और बांध लबालब हैं। ऐसे में हरा सोना यानी सिंघाड़े का बंपर उत्पादन हो रहा है। मार्केट में सिंघाड़े की कीमत भी अच्छी मिल रही है। कुछ ही महीने की खेती में किसानों को 50 फीसदी तक मुनाफा हो रहा है।
सवाई माधोपुर जिला अरावली की पहाड़ियों और रणथंभौर के जंगलों से घिरा है। नदियां और तालाब इसे समृद्ध बनाते हैं। सवाई माधोपुर शहर से उत्तर में करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर छोटा सा कस्बा है बौंली। यह कस्बा मीठे सिंघाड़ों के लिए जाना जाता है। बौंली उपखंड के खारेला बांध समेत आस-पास के कई तालाबों में इन दिनों सिंघाड़े की खेती की जा रही है। यह सीजन दीपावली से करीब 10 दिन पहले ही शुरू हुआ है। बाजार में सिंघाड़ों के ठेले नजर आ रहे हैं। बौंली के सिंघाड़े मीठे और पोषक तत्वों से भरपूर हैं। इनमें रस की मात्रा अधिक होती है। साइज भी अच्छा मिल रहा है। इस बार की बारिश के कारण तालाब पूरी तरह लबालब हैं। ऐसे में सिंघाड़े की खेती के लिए किसानों को एरिया भी अधिक मिला है।
किसानों को सिंघाड़ों की खेती से अगस्त से ही फुरसत नहीं मिल रही है। इस काम में तुड़ाई में अधिक मेहनत है। फिलहाल सिंघाड़ा रोजाना 50 फीसदी मुनाफा दे रहा है।
किसान बोले- मंडी में मिल रहा अच्छा भाव
बौंली उपखंड के पिचौर गांव के किसान घनश्याम ने बताया- सिंघाड़े की खेती के लिए पौध लगाने का सीजन बारिश के दौरान अगस्त से ही शुरू हो जाता है। इस बार बादल खूब मेहरबान हुए हैं। इसलिए अच्छी पौध तैयार हो गई है। 20 अक्टूबर से सिंघाड़े का प्रोडक्शन मिल रहा है। दीपावली के आस-पास बंपर उत्पादन मिलने लगा है। थोक में यह माल 20 रुपए किलो तक बिक रहा है। जबकि रिटेल में कीमत 60 रुपए किलो तक है। ऐसे में अक्टूबर-नवंबर से जनवरी-फरवरी तक के सीजन में किसानों को रोजाना कैश में आय मिलती है। 15 लाख लागत लगाने पर 30 लाख की बिक्री होती है। इस तरह एक सीजन से 15 लाख तक शुद्ध मुनाफा मिल जाता है।
बौंली के ही किसान हनुमान ने बताया- मैं 10 साल से सिंघाड़े की खेती कर रहा हूं। अगस्त में पौध लगाई थी। 20 दिन से तुड़ाई का काम चल रहा है। बांध में 15 लाख रुपए इन्वेस्ट किए हैं। तुड़ाई के बाद सिंघाड़ा सवाई माधोपुर, बौंली, दौसा, लालसोट और जयपुर की मंडियों में जा रहा है। इस समय मांग भी खूब है।
कृषि एक्सपर्ट बोले- यहां का सिंघाड़ा मीठा और स्वादिष्ट
कृषि एक्सपर्ट गिरीश गौतम ने बताया- अच्छी बारिश से इस बार बौंली का खारेला बांध पूरी तरह भरा हुआ है। हर बार जब बांध पूरा भरता है तो सिंघाड़ा उगाने वाले किसानों को अच्छा रोजगार मिल जाता है। परंपरागत खेती के लिए यह ऑफ सीजन होता है। किसान अपने खेतों में जुताई करने के बाद सिंघाड़े के लिए नगर पालिका प्रशासन से ठेका उठा लेते हैं। इसके बाद रोजगार का अच्छा साधन मिल जाता है। इसमें अच्छी कमाई तो है, लेकिन मेहनत भी भरपूर करनी होती है। तालाब से सिंघाड़ा तोड़ने में बहुत ज्यादा परिश्रम करना होता है। बौंली उपखंड के सिंघाड़ों का स्वाद और रस मीठा है। यहां से भाड़ोती, सवाई माधोपुर और आसपास के शहरों-कस्बों तक यहां के माल की डिमांड है। इस बार का सीजन लंबा चलने के आसार हैं। पानी की भी कमी नहीं है। ऐसे में फरवरी तक सिंघाड़े का उत्पादन और डिमांड बनी रहने की संभावना है। जाहिर है कि किसानों को लंबे समय के लिए आय का स्रोत मिलेगा।
इस बार नहीं हुई नीलामी, खातेदार किसानों को फायदा
सवाई माधोपुर के उद्यान विभाग के उप निदेशक पांचूलाल मीणा ने बताया- बौंली और खंडार कस्बों के तालाबों में सिंघाड़े की खेती होती है। खंडार कस्बे के गांव बहरांवड़ा और बालेर के तालाब में इस बार अच्छा सिंघाड़ा हो रहा है। वहीं बौंली के खारेला बांध में भी सिंघाड़े की उपज, क्वालिटी और स्वाद इस बार बेहतर है। हालांकि सवाई माधोपुर में रकबा अपेक्षाकृत कम है। यहां जिले में 10 हेक्टेयर में सिंघाड़ा उत्पादन किया जा रहा है। उन्होंने बताया- पहले खारेला बांध ग्राम पंचायत के अधीन था। ग्राम पंचायत ही सिंघाड़े की खेती के लिए एरिया तय करती थी और ठेके की नीलामी करती थी।
नगर पालिका बनने के बाद नीलामी प्रक्रिया नहीं की गई। ऐसे में बांध एरिया के चारों तरफ जिन किसानों की जमीन थी, वे ही सिंघाड़े की खेती करने लगे। इस साल जुलाई से ही बांध में पानी की आवक होने लगी थी। जुलाई के अंत से ही बांध में किसानों ने पौध रोपने का काम शुरू कर दिया था। काम जोखिम का, गहरे पानी में जाकर करते हैं पौधरोपण पांचूलाल मीणा ने बताया- सिंघाड़े की खेती जोखिम और मेहनत का काम है। किसान और खेतिहर मजदूर एयर ट्यूब और नाव से पानी के बीच जाते हैं। तैर कर गहरे पानी में पहुंचकर तल में पौध का रोपण करते हैं। पौधा बढ़कर तीन से चार महीने में सतह तक आ जाता है। इसके बाद सतह पर ही फल लगता है, जिसे नाव में बैठकर तोड़ा जाता है।
बांध के पानी से ही सिंघाड़े को साफ किया जाता है। धुलाई के बाद बिकने के लिए बाजार में लाया जाता है। फुटकर व्यापारी बांध पर ही सिंघाड़े की बोरियां बोली लगाकर छुड़ा लेते हैं। इसके बाद सड़क किनारे फुटपाथ पर या फिर ठेले पर इन्हें बेचकर अच्छा मुनाफा कमाते हैं। कई किसान माल को सीधे मंडियों में पहुंचाते हैं। इस बार मजदूरी की दरें बढ़ने से खेतिहर मजदूरों को भी सीजन में फायदा हो रहा है।
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