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सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा के वो चेहरे हैं जिनकी वजह से भारतीय सिनेमा का रूप बदला. वह दादा साहब फाल्के के बाद भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े चेहरे हैं, जिन्होंने अपने करियर में 37 फिल्में बनाई और उन्हें इसके लिए 32 अलग-अलग अवार्ड मिले. आज सत्यजीत रे की 102 वीं जयन्ती है

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2 मई 1921 को कोलकाता में जन्मे सत्यजीत रे का शुरुआती जीवन कठिनाइयों में बीता। शुरुआत में उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में बतौर जूनियर विजुलाइजर काम किया।

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अंग्रेजी फिल्म ‘बाइसिकल थीव्स’ ने उन्हें प्रभावित किया

अंग्रेजी फिल्म ‘बाइसिकल थीव्स’ ने उन्हें प्रभावित किया

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1952 में अपनी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ की शूटिंग शुरू कर दी।

1952 में अपनी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ की शूटिंग शुरू कर दी।

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सत्यजीत रे फिल्म निर्माण से जुड़े हर काम में माहिर थे। फिर चाहे वह स्क्रीनप्ले हो या कास्टिंग, म्यूजिक, आर्ट डायरेक्शन, एडिटिंग, वह हर विधा में माहिर थे।

सत्यजीत रे फिल्म निर्माण से जुड़े हर काम में माहिर थे। फिर चाहे वह स्क्रीनप्ले हो या कास्टिंग, म्यूजिक, आर्ट डायरेक्शन, एडिटिंग, वह हर विधा में माहिर थे।

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उन्होंने कुल 37  फिल्मों का डायरेक्शन किया था, जिनमें से 32 को राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।

उन्होंने कुल 37  फिल्मों का डायरेक्शन किया था, जिनमें से 32 को राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।

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1992 में सत्यजीत रे को "ऑस्कर का ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट" प्रदान किया गया।

1992 में सत्यजीत रे को "ऑस्कर का ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट" प्रदान किया गया। 

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वे चार्ली चैप्लिन के बाद सिनेमा से जुड़े अकेले ऐसे शख्स थे जिन्हें ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने ‘डॉक्टरेट’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।

वे चार्ली चैप्लिन के बाद सिनेमा से जुड़े अकेले ऐसे शख्स थे जिन्हें ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने ‘डॉक्टरेट’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।

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 ‘भारत रत्न’ पाने वाले वे अब तक के एकमात्र फिल्म निर्देशक हैं। 

 ‘भारत रत्न’ पाने वाले वे अब तक के एकमात्र फिल्म निर्देशक हैं। 

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1955 में फिल्म ‘पथेर पांचाली’ से शुरू हुआ उनका सिनेमाई सफर आखिरी फिल्म ‘आगंतुक’ (1992) तक कुल 37 फिल्मों का रहा।

1955 में फिल्म ‘पथेर पांचाली’ से शुरू हुआ उनका सिनेमाई सफर आखिरी फिल्म ‘आगंतुक’ (1992) तक कुल 37 फिल्मों का रहा।