
नारेहड़ा। आस्था, परंपरा और पर्यावरण संरक्षण का संगम इस दीपावली पर भी बड़ा मंदिर गौशाला, खड़ब में देखने को मिल रहा है। श्री श्री 1008 श्री महावीर दास त्यागी फलाहारी जी महाराज, अध्यक्ष बड़ा मंदिर गौशाला खड़ब के सान्निध्य में इस वर्ष भी गौमाता के गोबर से बने हजारों प्राकृतिक व पर्यावरण–हितैषी दीपक दीपावली पर्व के लिए तैयार किए गए हैं। यह परंपरा लगातार 10 वर्षों से जारी है और अब यह पूरे क्षेत्र में एक प्रेरक उदाहरण बन चुकी है।

दीपक निर्माण का कार्य गौशाला परिसर में श्रद्धा, सेवा और भक्ति के वातावरण में किया जाता है। गौशाला के सेवक और भक्तजन मिलकर गोबर को प्राकृतिक रूप से सुखाकर उसे पारंपरिक दीपक आकार में ढालते हैं। इसके बाद दीपकों को सजाया जाता है और दीपावली से पहले उपयोग के लिए तैयार किया जाता है। इस वर्ष दीपक निर्माण में रामनिवास दास जी, गंगादास जी, लाखनसिंह, छोटे, सौभाग्य, कुंजबिहारी, रामकरण, सवाईसिंह सहित अन्य गौसेवकों की अहम भूमिका रही। सभी ने निस्वार्थ भाव से सेवा कर दीपक तैयार किए, जो इस दीपावली पर घर–घर में गौमाता के आशीर्वाद से प्रकाश फैलाएँगे।

श्री महावीर दास त्यागी फलाहारी जी महाराज ने बताया कि “गौमाता का गोबर केवल खाद नहीं, बल्कि यह पवित्रता, समृद्धि और जीवन का प्रतीक है। इससे बने दीपक जब जलते हैं तो प्रदूषण नहीं फैलाते, बल्कि उनकी राख मिट्टी को उपजाऊ बनाती है। दीपावली जैसे पवित्र पर्व पर ऐसे दीपक का उपयोग करना न केवल धर्म बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी प्रतीक है।”
गौशाला में बने इन दीपकों की बिक्री से प्राप्त राशि गौमाता की सेवा, भरण–पोषण और धार्मिक आयोजनों में उपयोग की जाती है। इस धार्मिक कार्य से न केवल गौसेवा को प्रोत्साहन मिलता है, बल्कि लोगों में प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ती है।
त्यागी महाराज का कहना है कि “अगर हर परिवार दीपावली पर एक दीपक भी गौमाता के गोबर से जलाए, तो यह पर्यावरण के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।”

खड़ब गौशाला की यह परंपरा आज समाज के लिए एक उदाहरण बन चुकी है — जहाँ हर दीपक केवल अंधकार मिटाने का माध्यम नहीं, बल्कि गौसेवा, संस्कृति और स्वच्छता का प्रतीक बनकर पूरे क्षेत्र में पवित्र प्रकाश बिखेर रहा है।



