Unique tradition : दिवाली के दिन यहां महिलायें श्मशान घाट जाती है. पढ़िए क्यों….!
भारत विविधता और परम्पराओं का देश है. इसी Unique tradition के अनुरूप पूरा देश अपने घर व प्रतिठान पर दिवाली को दीपक जलाता है. लेकिन अलवर के बानसूर के गुंता गांव में दिवाली के दिन अनोखी परंपरा है। यहाँ दिवाली के दिन महिलायें श्मशान घाट जाती है. पढ़िए क्यों…. !
आमतौर पर इंसान की मौत होने पर ही अंतिम संस्कार के लिए लोग श्मशान घाट जाते है। लेकिन बानसूर के गुंता गांव में दिवाली के दिन (Unique tradition) अनोखी परंपरा है। यहां गांव की महिलाएं श्मशान घाट पहुंचकर पूजा करती है। यहां के लोग जन्म और मृत्यु दोनों मौके पर ही श्मशान घाट पर जाते है और वहां पर सती माता की पूजा करते है। ये ही नहीं, इसके अलावा किसी के बच्चा होने पर भी महिलाएं वहा जाकर दिवाली के दिन सती माता की पूजा करती हैं। गांव के लोगों का कहना है कि यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। वहीं नवविवाहित दंपति भी पहले वहा जाकर धोक लगाते हैं और नए जीवन की शुरुआत करते हैं।
लोगों का मानना है कि छोटे बच्चों को वहां ले जाकर धोक दिलाने से बच्चों की उम्र लंबी होती है। इसके अलावा किसी बच्चे के बीमार होने पर भी महिलाएं बच्चे को श्मशान घाट ले जाकर सती माता के आगे धोक दिलाती है। महिलाएं वहां जाकर सती माता के आगे बच्चों और बड़ों के नाम से पूजा करती हैं। गांव में यह परंपरा प्रत्येक पर लागू नही है। लेकिन इतना जरूर है जिन परिवारों में बच्चों का जन्म होता है तो परिजन पहले श्मशान जाकर सती माता की पूजा करते हैं।
Unique tradition : इसके पीछे है अनोखी कहानी
ग्रामीणों की जानकारी के अनुसार 400 सौ साल पहले का रहस्य है। 400 साल पहले गांव के लड़के की शादी बाबरिया गांव की एक लड़की से तय हुई थीं। लेकिन सगाई की रश्म पूरी होने के कुछ दिन बाद ही लड़के की मौत हो गई। लड़की को इसकी सूचना मिलते ही वह लड़की पति के वियोग में सती होने के लिए लड़के के गांव पहुंच गई थी। बताया जाता है कि लड़की को जब अपने पति की मौत की सूचना मिली तो उसके हाथ गोबर से सने हुए थे। लेकिन हाथों में गोबर की जगह मेहंदी रच गई। यह अचानक होने से उसे अपने पति की चिंता सताने लगी। इसके बाद ही उसके पति की मौत की सूचना मिल गई। लड़की अपने पति के वियोग में श्मशान घाट पहुंच गई और कुछ दूरी पर बैठ गई। मानना है कि उसके शरीर को अपने आप ही अग्नि लग गई और वह सती हो गई। बताया जाता है की उसके साथ एक कुत्ता भी आया था। वह भी कुछ ही दूरी पर पत्थर की मूरत बन गया था। उसके बाद से ही वहीं श्मशान घाट में उसका मंदिर बना दिया गया और उसकी सती माता के नाम से पुजा की जा रही है। गांव की महिलाएं होली और दीपावली को वहां जाकर पूजा करती है और वहां बैठकर सती माता की कहानी सुनाती है। और अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करती है। आप इस कहानी पर भले यकीन ना हो, लेकिन इस गांव में ये परम्परा वर्षों से चली आ रही है।